King of heaven

King Of Heaven

हिन्दुधर्म में मूलत: 33 प्रमुख देवताओं का उल्लेख मिलता है। सभी देवताओं के कार्य और उनका चरित्र भिन्न भिन्न है। हिन्दू देवताओं में इन्द्र बहुत बदनाम है। इन्द्र के किस्से रोचक है। इन्द्र के जीवन से मनुष्यों को शिक्षा मिलती है कि भोग से योग की ओर कैसे चलें।
इन्द्र बदनाम इसलिए कि वे इन्द्रिय सुखों अर्थात भोग और ऐश्वर्य में ही डुबे रहते हैं और उनको हर समय अपने सिंहासन की ही चिंता सताती रहती है। हर कोई उनका सिंहासन क्यों हथियाना चाहता है? क्योंकि वह स्वर्ग के राजा हैं। देवताओं के अधिपति हैं और उनके दरबार में सुंदर अप्सराएं नृत्य कर और गंधर्व संगीत से उनका मनोरंजन करते हैं। इन्द्र की अपने सौतेले भाइयों से लड़ाई चलती रहती है जिसे पुरणों में देवासुर संग्राम के नाम से जाना जाता है। देवताओं को सुर इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे सुरापान करते थे और असुर नहीं।
हम जिस इन्द्र की बात कर रहे हैं वह अदिति पुत्र और शचि के पति देवराज हैं। उनसे पहले पांच इन्द्र और हो चुके हैं। इन इन्द्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर भी कहा जाता है। क्रमश: 14 इन्द्र हो चुके हैं:- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। उपरोक्त में से शचिपति इन्द्र पुरंदर के पूर्व पांच इन्द्र हो चुके हैं।
माना जाता है कि इंद्र किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं, बल्कि यह एक पद का नाम है और दूसरा एक विशेष प्रकार के बादल का भी नाम है। इंद्र एक काल (समय पीरियड) का नाम भी है। मनवंतर में अलग इंद्र, सप्तर्षि, अंशावतार, मनु होते हैं। अर्जुन एक के दी पुत्र थे। 
इंद्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर, देवराज भी कहा जाता है। इंद्र के कारण ही इंद्र धनुष, इंद्रजाल, इंद्रियां, इंदिरा जैसे शब्दों की उत्पत्ति हुई है। इंद्र को देवताओं का अधिपति माना गया है। इंद्र को उनके छल के कारण अधिक जाना जाता है।
वैदिक समाज जहां देवताओं की स्तुति करता था, वहीं वह प्राकृतिक शक्तियों की भी स्तुति करता था और वह मानता था कि प्रकृति के हर तत्व पर एक देवता का शासन होता है। उसी तरह वर्षा या बादलों के देवता इंद्र हैं तो जल (समुद्र, नदी आदि) के देवता वरुण हैं।

अब तक हुए 14 इंद्र : स्वर्ग पर राज करने वाले 14 इंद्र माने गए हैं। इंद्र एक काल का नाम भी है, जैसे 14 मन्वंतर में 14 इंद्र होते हैं। 14 इंद्र के नाम पर ही मन्वंतरों के अंतर्गत होने वाले इंद्र के नाम भी रखे गए हैं। प्रत्येक मन्वंतर में एक इंद्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि।
कहा जाता है कि एक इन्द्र 'वृषभ' (बैल) के समान था। असुरों के राजा बली भी इंद्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इंद्रपद हासिल कर लिया था। 
इन्द्र का चरित्र और कार्य : इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इंद्र की पत्नी इंद्राणी कहलाती है।
इंद्रपद पर आसीन देवता किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देता था इसलिए वह कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता है तो कभी राजाओं के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े चुरा लेता है।
ऋग्वेद के तीसरे मण्डल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इंद्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इंद्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्तिशाली देव है। ऐसे माना जाता है कि इंद्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।
शक्तियां : इन्द्र के युद्ध कौशल के कारण आर्यों ने पृथ्वी के दानवों से युद्ध करने के लिए भी इन्द्र को सैनिक नेता मान लिया। इन्द्र के पराक्रम का वर्णन करने के लिए शब्दों की शक्ति अपर्याप्त है। वह शक्ति का स्वामी है, उसकी एक सौ शक्तियाँ हैं। चालीस या इससे भी अधिक उसके शक्तिसूचक नाम हैं तथा लगभग उतने ही युद्धों का विजेता उसे कहा गया है। वह अपने उन मित्रों एवं भक्तों को भी वैसी विजय एवं शक्ति देता है, जो उस को सोमरस अर्पण करते हैं। इन्द्र और वरुण नामक दोनों देवता एक दूसरे की सहायता करते हैं। वरुण शान्ति का देवता है, जबकि इन्द्र युद्ध का देव है एवं मरूतों के साथ सम्मान की खोज में रहता है।
सुर और असुर : देवताओं के अधिपति इन्द्र, गुरु बृहस्पति और विष्णु परम ईष्ट हैं। दूसरी ओर दैत्यों के अधिपति हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के बाद विरोचन बने जिनके गुरु शुक्राचार्य और शिव परम ईष्ट हैं। एक ओर जहां देवताओं के भवन, अस्त्र आदि के निर्माणकर्ता विश्‍वकर्मा थे तो दूसरी ओर असुरों के मयदानव। इन्द्र के भ्राताश्री वरुणदेव देवता और असुर दोनों को प्रिय हैं। 
आखिर स्वर्ग कहां है? : आज से लगभग 12-13 हजार वर्षं पूर्व तक संपूर्ण धरती बर्फ से ढंकी हुई थी और बस कुछ ही जगहें रहने लायक बची थी उसमें से एक था देवलोक जिसे इन्द्रलोक और स्वर्गलोक भी कहते थे। यह लोक हिमालय के उत्तर में था। सभी देवता, गंधर्व, यक्ष और अप्सरा आदि देव या देव समर्थक जातियां हिमालय के उत्तर में ही रहती थी। 
भारतवर्ष जिसे प्रारंभ में हैमवत् वर्ष कहते थे यहां कुछ ही जगहों पर नगरों का निर्माण हुआ था बाकि संपूर्ण भारतवर्त समुद्र के जल और भयानक जंगलों से भरा पड़ा था, जहां कई अन्य तरह की जातियां प्रजातियां निवास करती थी। सुर और असुर दोनों ही आर्य थे। इसके अलावा नाग, वानर, किरात, रीछ, मल्ल, किन्नर, राक्षस आदि प्रजातियां भी निवास करती थी। उक्त सभी ऋषि कश्यप की संतानें थी। 
इन्द्र के भाई : उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी तो निश्‍चित ही तब मेघ और जल दोनों ही तत्व सबसे भयानक माने जाते थे। मेघों के देव इन्द्र थे जो जल के के भाई वरुण थे। दोनों ही दोनों तत्व को संचालित करते थे। इस तरह इन्द्र के और भी भाई थे जिनका नाम क्रमश: विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन) था। ये सभी भाई सुर या देव कहलाते थे।
माना जाता है कि इन्द्र के भाई विवस्वान् ही सूर्य नाम से जाने जाते थे और विष्णु इन्द्र के सखा थे। इन्द्र के एक अन्य भ्राता अर्यमा को पितरों का देवता माना जाता है, जबकि भ्राता वरुण को जल का देवता और असुरों का साथ देने वाला माना गया है। इसी तरह विधाता, पूषा, त्वष्टा, भग, सविता, धाता, मित्र और त्रिविक्रम आदि के बारे में वेदों में उल्लेख मिलता है।
इन्द्र के सौतेले भाई : इन्द्र के सौतेले को असुर कहते थे। इन्द्र के सौतेले भाई का नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष था जबकि बहिन का नाम सिंहिका था। हिरण्याक्ष का तो विष्णु ने वराह अवतार लेकर वध कर दिया था जबकि हिरण्यकश्यप का बाद में नृसिंह अवतार लेकर वध कर दिया था। हिरण्यकश्यप के मरने के बाद प्रह्लाद ने सत्ता संभाली। प्रहलाद के बाद उनके पुत्र विरोचन को असुरों का अधिपति बना दिया गया। विरोचन के बाद उसका पुत्र महाबलि असुरों का अधिपति बना।
इन्द्र के माता-पिता : इन्द्र की माता का नाम अदिति था और पिता का नाम कश्यप। इसी तरह इन्द्र के सौतेले भाइयों की माता का नाम दिति और पिता कश्यप थे। ऋषि कश्यप की कई पत्नियां थीं जिसमें से 13 प्रमुख थीं। उन्हीं में से प्रथम अदिति के पुत्र आदित्य कहलाए और द्वितीय दिति के पुत्र दैत्य। आदित्यों को देवता और दैत्यों को असुर भी कहा जाता था। इसके अलावा दनु के 61 पुत्र दानव, अरिष्टा के गंधर्व, सुरसा के राक्षस, कद्रू के नाग आदि कहलाए।
इन्द्र की पत्नी और पुत्र : इन्द्र का विवाह असुरराज पुलोमा की पुत्री शचि के साथ हुआ था। इन्द्र की पत्नी बनने के बाद उन्हें इन्द्राणी कहा जाने लगा। इन्द्राणी के पुत्रों के नाम भी वेदों में मिलते हैं। उनमें से ही दो वसुक्त तथा वृषा ऋषि हुए जिन्होंने वैदिक मंत्रों की रचना की। 
 इन्द्र की वेशभूषा और शक्ति : सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वे अपार शक्तिशाली देव हैं। इन्द्र मेघ और बिजली के माध्यम से अपने शत्रुओं पर प्रहार करने की क्षमता रखते थे।
इन्द्र का जन्म : ऋग्वेद के चौथे मंडल के 18वें सूक्त से इन्द्र के जन्म और जीवन का पता चलता है। उनकी माता का नाम अदिति था। कहते हैं कि इन्द्र अपनी मां के गर्भ में बहुत समय तक रहे थे जिससे अदिति को पर्याप्त कष्ट उठाना पड़ा था। लेकिन अधिक समय तक गर्भ में रहने की वजह से ही वे अत्यधिक बलशाली और पराक्रमी हुए। जब इन्द्र ने जन्म लिया, तब कुषवा नामक राक्षसी ने उनको अपना ग्रास बनाने की चेष्टा की थी लेकिन इन्द्र में उन्हें सूतिकागृह में मार डाला।
इन्द्रपद : इन्द्र के बल, पराक्रम और अन्य कार्यों के कारण उनका नाम ही एक पद बन गया था। अब जो भी स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त कर लेता था उसे इन्द्र की उपाधि प्रदान कर दी जाती थी। विभिन्न कालों में विभिन्न व्यक्ति उस पर आसीन होते थे। इन्द्र के निर्वाचन की पद्धति क्या थी इसका कुछ पता नहीं, लेकिन जो भी व्यक्ति उस पद पर आरूढ़ हो जाता था उसके हाथ में सर्वोच्च सत्ता आ जाती थी।
स्वर्ग पर राज करने वाले 14 इन्द्र माने गए हैं। इन्द्र एक काल का नाम भी है, जैसे 14 मन्वंतर में 14 इन्द्र होते हैं। 
14 इन्द्र के नाम पर ही मन्वंतरों के अंतर्गत होने वाले इन्द्र के नाम भी रखे गए हैं। प्रत्येक मन्वंतर में एक इन्द्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। उपरोक्त में से शचिपति इन्द्र पुरंदर के पूर्व पांच इन्द्र हो चुके हैं।
कहा जाता है कि एक इन्द्र 'वृषभ' (बैल) के समान था। असुरों के राजा बली भी इन्द्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इन्द्रपद हासिल कर लिया था। इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी कहलाती है।
इन्द्रपद पर आसीन देवता किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देता था इसलिए वह कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता है तो कभी राजाओं के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े चुरा लेता है। इन्द्र और वरुण नामक दोनों देवता एक दूसरे की सहायता करते हैं। वरुण शान्ति का देवता है, जबकि इन्द्र युद्ध का देव है एवं मरूतों के साथ सम्मान की खोज में रहता है।

वैदिक काल में युद्ध-विद्या अत्यंत विकसित थी। सैनिकगण घोड़े की सवारी करते थे और धनुष-बाण उन दिनों के सर्वाधिक प्रचलित अस्त्र थे। इन्द्र नाम से वेदों में कई युद्धों और कार्यों का वर्णन मिलता है। संभव है कि यह एक ही इन्द्र नामधारी व्यक्ति द्वारा संपन्न न होकर विभिन्न इन्द्रों द्वारा विभिन्न कालों में संपन्न किए गए हों। जो भी हो, इतना निश्चित है कि इन्द्र तत्कालीन आर्य सभ्यता की रक्षा करने वाला एक महत्वपूर्ण नेतृत्व था। शायद यही कारण है कि विजयादशमी के पावन पर्व पर भगवान राम के साथ ही हम इन्द्र का भी स्मरण करते हैं।

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