Facts about Mahadev



ध्यान और ज्ञान का प्रतीक हैं भगवान शिव, सीखें आगे बढ़ने के सबक




  • भगवान शिव को देवों के देव का कहा जाता है. महादेव का एक रूप ताडंव करते नटराज का है तो दूसरा रूप महान महायोगी का है. ये दोनों ही रूप रहस्‍यों से भरे हैं, लेकिन शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है. जहां एक साथ इतने सारे रंग हो फिर क्‍यों न अपनी जिंदगी में इन रंगों से प्रेरणा लें.

ब्रह्मा उत्‍पत्ति के लिए और विष्‍णु रचना के लिए और शिव को विनाश के लिए जाना जाता है. शिव का यह रूप आपको डराने वाला लग सकता है लेकिन किसी बुराई का खत्‍म होना बेहद जरूरी होता है. शिव इसी के लिए जाने जाते हैं.

शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ. किसी परिस्थिति से खुद को दूर रखते हुए उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता है. महादेव एक बार ध्‍यान में बैठ जाएं तो दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन उनका ध्‍यान कोई भंग नहीं कर सकता है. शिव का यह ध्‍यान हमें जीवन की चीजों पर नियंत्रण रखना सिखाती है. 


समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे क्‍योंकि विष कोई नहीं पी सकता था. ऐसे में महादेव ने स्‍वयं विष (हलाहल) पिया और उन्‍हें नीलकंठ नाम दिया गया. इस घटना से बहुत बड़ा सबक मिलता है कि हम भी जीवन में आने वाली निगेटिव चीजों को अपने अंदर रख लें लेकिन उसका असर न खुद पर हावी होने दें अौर न ही दूसरों पर. 

शिव का यह रूप जगजाहिर है. हिंदू मान्‍यताओं के हिसाब से परफेक्‍ट पार्टनर महादेव को ही माना जाता है. अगर पार्वती ने उन्‍हें मनाने के लिए सालों की तपस्‍या की तो दूसरी ओर शिव ने उन्‍हें अर्धांगिनी बनाया. तभी तो 33 करोड़ देवताओं में शिव को ही अर्धनारीश्‍वर कहा जाता है.


शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह संदेश मिलता है कि हम जिन चीजों को अपने आस-पास देख भी नहीं सकते उसे उन्‍होंने बड़ी आसानी से अपनाया है. तभी तो उनकी शादी पर भूतों की मंडली पहुंची थी और शरीर में भभूत लगाए भोलेनाथ के गले में सांप लिपटा होता है. बुराई किसी में नहीं बस एक बार आपको उसे अपनाना होता है.

शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है. तीसरी आंख का मतलब है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है. दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं. जो कि भीतर की ओर देख सकता है. इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं. इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है. इसलिए बनी बनाई चीजों पर चलने से पहले खुद समझे-सोचें.


शिव की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार. वे हर रूप में बिल्‍कुल अलग हैं. फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज हो, विष पीने वाले नीलकंठ , अर्धनारीश्‍वर, सबसे पहले प्रसन्‍न होने वाले भोलेनाथ का हो. वे हर रूप में जीवन को सही राह देते हैं.

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